पर उनकी रचनाएं अनेक हैं,
धरती ,अंबर ,जल ,आकाश,
मनुष्य - पशु के एक ही जगह पर वास ।
शरद, ग्रीष्म, बसंत की,
चलती जब बयार,
हो जाते हम अभिभूत,
देते इश्वर को आभार ।
अनेकों जीव इस धरती पर,
हो जाते हम अचंभित,
की कैसे रचा होगा इश्वर ने ये संसार ?
की सबके रहने की व्यवस्था,
खाने को दिए फल हज़ार ।
एक ही जीवन में अनुभव होते अनेक,
हम सोचते, लगता है कम पड़ेगा जीवन एक ।
समय का पहिया तेजी से बढ़ता आगे,
लगता छोड़ कर हमें सब भागे ।
पर इश्वर ने लिख रखे है सब भाग्य हमारे,
ना मिला किसी को किस्मत से ज्यादा,
ना जिया किसी ने जीवन अपना आधा ।
संसार के चक्र में आया जो भी,
ना मिला उसे कुछ भी बनकर लोभी ।
ईश्वर ने जो दिया इस जीवन में
सब वापस लिया अपने शरण में ।
यहाँ सुने :-
--आदित्य राय (काव्यपल)
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