रुक! ज़रा ठहर जा





रुक ! ज़रा ठहर जा,
जीवन की आपा धापी को भूल,
ज़रा निखर जा,
रुक ! ज़रा ठहर जा ।

कड़कती धूप की मेहनत में,
बारिश में नहाते बदन में,
थकान को थोड़ा भूल जा,
रुक! ज़रा ठहर जा ।

कमाने की भागम भाग,
कुछ पाने की सुलगती आग,
को थोड़ा शांत कर जा,
रुक! ज़रा ठहर जा ।

मंजिल भी मिल जायेगी तुझे,
किस्मत भी हंसाएगी तुझे,
अगर थोड़ा सा तू खिल जा,
रुक ! ज़रा ठहर जा ।
रुक ! ज़रा ठहर जा ।


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---आदित्य राय (काव्यपल)


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