सुकून





मैं एक मुस्कुराता चेहरा हूं,
हजारों ख्वाहिशों से लिपटा,
हजारों बंदिशों में जकड़ा,
रिश्तों के कच्चे धागों को सहेजता,
एक डरता हुआ मन,
पर एक खिलखिलाता चेहरा हूं ।

मैं जीता हूं जरूर पर खुल के नहीं,
होठों पर मुस्कान तो हैं पर वो सच्ची नहीं,
पता नहीं क्या ढूंढता हूं अपने आस पास,
पर वो जो भी है, इतनी आसानी से मिलता नहीं ।

एक तलाश है जो कब से कर रहा हूं,
चलते चलते थक रहा हूं,
फिर रुक रहा हूं,
शायद देखा है उसे 
एक नन्ही सी जान  की मुस्कान में,
सब कहते हैं जिसे ढूंढ रहा हूं,
सुकून कहते हैं उसे,
जो नहीं मिलता आज भी किसी बड़ी दुकान में ।


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-- मोनिका (काव्यपल)
Pic credit : Suman Sourabh

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