ना श्रम कराओ उससे,
उसके बढ़ने में वो अवरोध है ।
ज्ञान का दीप जलाने को,
बेताब उसका मन है,
पोषक अन्न खाने को,
तड़प रहा उसका तन है ।
काली कोठरी में बंद कर रखा है,
जालिमों ने उन्हें ।
रोशनी,हवा, पानी, आकाश,
ढूंढ रहे है सब उन्हे ।
किताब कॉपी की ना भेंट हुई उनसे,
खिलौनों ने भी मुंह फेर लिया उनसे ।
दो पाई क्या कमाएंगे वो,
अपना बचपन गवांकर
अपने मां- बाप के लिए ।
आग की भट्टी में तड़पकर,
झुलस जाएगा जीवन उनका
अपने पेट की ज्वाला बुझाने के लिए ।
यहाँ सुने :-
----आदित्य राय (काव्यपल)
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