लक्ष्य की ओर



जुनून जुटा रहा हूं,
जोशीले गीत गुनगुना रहा हूं ।
हैं लक्ष्य को भेदना मुझे,
धारा का रुख हैं मोड़ना मुझे ।

धुंधली सी दिखती हैं,
लक्ष्य की तस्वीर मुझे ।
चुनौती देती दिखती हैं,
रास्ते की ठोकरें मुझे ।

हैं समय सीमित पाने में उसे,
तैयारियों में कमी ना रह जाए कोई,
इसलिए जागते रहने कि जरुरत हैं मुझे ।

सीखता हूं हर रोज़ कुछ नया,
ज़िन्दगी हर रोज लेती कोई रुख नया ।

लक्ष्य से भटकना ना भाता मुझे,
लक्ष्य को पाने का जोश जगाता मुझे ।

बहुत झेला है इस मुकाम पर आने को,
लक्ष्य को अपने आँखो में बसाने को ।

थक जाता हूं कभी कभी,
पर याद आता है कि जागा हूं अभी अभी ।

मुसीबतों के पहाड़ को पार करना हैं,
लक्ष्य पा कर ही दम भरना हैं  ।
चाहें रास्ते में कितने भी कांटे बिछे हो,
फूल समझ कर उन्हें पार करना है ।


यहाँ सुने :-

---आदित्य राय (काव्यपल)

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