बागीचे के उन पेड़ो से जा लगा था मन,
आपकी पकवानों के महकते स्वाद की,
उस घर की हर बात है मुझे याद ।
चिलचिलाती धूप से खेलकर घर लौटना,
वो आपका घड़े के पानी से हमारी प्यास बुझाना,
सपनो की रातों में कहानियां सुनाना,
वो बालों को प्यार से सहलाना ।
शायद वो यादें घुमाएंगी हमें उन गलियों में,
जब देखेंगे हम मुस्कान आपके लगाए,
बागवानों की कलियों में ।
प्यार से गले लगाना भी याद है आपका,
वो गोद में खिलाना भी याद है आपका,
कुछ समझदारी की बातें बताना भी याद है आपका,
वो झूलों पर झुलाना भी याद है आपका ।
शायद ईश्वर ने आपके जैसा एक ही बनाया,
बचपन, जवानी और दुख में,
जिसने रोते हुए को हमेशा हंसना सिखाया ।
---आदित्य राय (काव्यपल)
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