क्यूं मांगे कोई भीख,
जब जीवन में हो सब ठीक।
कभी कोई मां मांगती भीख,
बच्चों के पेट के लिए ।
कभी कोई बाप मांगता भीख,
रात की चादर ओढ़ने के लिए ।
कभी कोई बूढ़ी मांगती भीख,
अपनी दवाई के लिए ।
कभी कोई बूढ़ा मांगता भीख,
बेटी की विदाई के लिए ।
हम बोल देते उन्हें भीखमंगे,
क्या सोंचा हमने कभी
क्या बीत रही उनके जीवन में ।
दिन बितती बिना कोई रोटी,
बदन पे होती ना कोई धोती,
घिस जाती एक साड़ी पूरे जीवन में,
छांव की तलाश में बीत जाता है जीवन,
धूप की किरण में ।
क्यूं मांगे कोई भीख
जब जीवन में हो सब ठीक ।
यहाँ सुने :-
---आदित्य राय (काव्यपल)
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