मैं ज़मीन हूं , तू उसे सींचता हुआ हल,
मैं नदी हूं , तू उसमें बहता हुआ जल,
मैं आसमान हूं , तू उसमें वर्षा लाता हुआ बादल ।
मैं इंद्रधनुष हूं , तू उसमें जगमगाता हुआ रंग,
मैं पहाड़ हूं, तू उसमें इठलाता हुआ ढंग ।
मैं शीतल जल हूं, तू उसमें समाया ठंडक,
मैं मंदिर हूं, तू उसमें रखा ईश्वर का रूपक ।
मैं हवा हूं, तू उसमें बहती बयार,
मैं झील हूं, तू उसमें गिरते पानी की बौछार ।
मैं गांव की मस्जिद हूं, तू उसमें अता होती नमाज़,
मैं कल की सोच हूं, तू उसे उकसाती आज,
मैं पंछी हूं, तू उस कोयल की आवाज़ ।
मैं दिन का सूरज हूं, तू सुबह की अज़ान,
मैं सितार बजाता, तू उससे निकलती तान ।
मैं दीपक हूं, तू उसकी लौ,
मैं पेड़ हूं, तू उसकी छौ ।
मैं वो इंसान हूं, जिसे चलाता तू इंधन,
तुझे देखते सोंचते कट जाए मेरा ये जीवन ।
यहाँ सुने :-
---आदित्य राय (काव्यपल)
Comments
Post a Comment