बीत रहा है ये भी साल ,
चल दिए हम अब आगे ,
उन यादों को संभाल ,
अपने साथियों के साथ ,
मिलाकर कदम -ताल ।
नए तरंगों का हो रहा आभास,
नए तराने गायेंगे उनके लिए ,
जो हैं अपने , पुराने और खास ।
वो पेड़ो की डालियाँ ,
वो फूलों की लालियाँ ,
जिनपर मँडराती वो तितलियों की टोलियां ।
वो लीची के रस, वो आम की बेलियाँ ,
वो बसंत की बहार , वो पतझड़ की सुखाड़ ।
वो गर्म हवाएं , वो सावन की फुहारें ,
वो सर्दी की धुप, जो करती हमें अनुभूत।
कर रही हमारा इंतज़ार ,
वो मोहल्लें की गलियाँ ,
नए साल के इंतज़ार में बैठी ,
खिलने फूलों की कलियाँ ।
यहाँ सुने :-
----आदित्य राय ( काव्यपल )
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