एक नज़रिया ऐसा भी





दिन है सुहाना, रात है हसीं,
सूरज की रोशनी, चांद की नमी,
कितनी सुंदर है ये, अपनी जिंदगी ।

ये दौड़ है जिसमे है, करोड़ों आदमी,
कुछ करते है दिखावा, कुछ की है सादगी,
कितनी सुंदर है ये, अपनी जिंदगी ।

कुछ लोग अकेले है, कुछ है वैवाहिक,
दोनो ही बिता रहे है, भरपूर बंदगी,
कितनी सुंदर है ये, अपनी जिंदगी ।

कुछ किस्से है आसूं के, कुछ ठाहके भी,
कही है दिल्लगी, और कही नाराजगी,
कितनी सुंदर है ये, अपनी जिंदगी ।

कुछ है चोर भी, कुछ है भ्रष्ट भी,
आशा है जल्दी होगी, ये दूर गंदगी,
और सुंदर होगी, तब अपनी जिंदगी ।


-स्पर्श भटेजा 

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